Add To collaction

दो से चार -05-Jan-2022

उपन्यास 


दो से चार 

भाग 1 

आशा ने खाना बनाया और किचिन से बाहर आ गई । खाना लगाने के लिए नव्या को बोल दिया । नव्या आशा की बड़ी बहन की लड़की है जो शादी शुदा है । आशा और नव्या में बहुत पटती है । वैसे उनका रिश्ता मौसी - बेटी का है लेकिन व्यवहार सहेलियों की तरह करतीं हैं । 

नव्या का जन्मदिन था । नव्या ने आशा को बुलवा लिया । धूमधाम से जन्मदिन मनाया गया । नव्या ने आशा से विशेष आग्रह किया कि वह दो चार दिन और रुक जाए । आशा उसके इस आग्रह को ठुकरा नहीं सकी और रुक गई । 25 मार्च 2020 को अचानक से पूरे देश में लॉकडाउन घोषित कर दिया गया। ना बसें चल रहीं थीं और ना ही रेल । यहां तक कि निजी कार चलाने की भी अनुमति नहीं थी । जो जहां था वहीं फंस गया । उस लिफ्ट की तरह जो अचानक खराब हो जाए और उसके अंदर घुसे हुए लोग उसमें फंस जाएं । आशा विचित्र स्थिति में फंस गई थी । मगर वह करे तो क्या करे ? 

ऐसी विकट स्थिति पहले कभी नहीं हुई थी । घर से बाहर भी नहीं जा सकते थे । आखिर दिन भर करें तो क्या करें ? कब तक गपशप करें ? कब तक टेलीविजन देखें ? कब तक फिल्म देखें ? सबसे बोर हो गए । 

नव्या ने आशा को कहा कि एक "साहित्यिक एप" है जिस पर हजारों लोग अपनी  कविताएं, कहानियां, लेख और दूसरी रचनाएं भेजते हैं । बाकी लोग उन्हें पढ़कर अपना टाइम पास करते हैं । आशा को यह प्रस्ताव थोड़ा थोड़ा जंचा । नव्या ने "साहित्यिक एप" आशा के मोबाइल में डाउनलोड कर दिया और उसकी एक आई डी बना दी । नव्या ने आशा से पूछा कि इस आई डी में नाम क्या रखूं ? आशा ने कहा आशा नाम है तो आशा ही रख दो । नव्या बोली "ऐसे सोशल मीडिया पर असली नाम पता फोटो वगैरह नहीं होनी चाहिए । बहुत सारे बदमाश लड़के गलत सलत मैसेज करते रहते हैं , फोन करके परेशान करते हैं । इसलिए कोई अच्छा सा काल्पनिक नाम सोचकर बताओ " 

आशा ने बहुत सोचा और अपना नाम "दिव्या" करवा लिया । अब दिव्या के नाम से उसकी आई डी बन गई थी । 

आशा को बचपन से ही कविताएं , कहानियां पढ़ने का बड़ा शौक था । कक्षा बारह तक तो वह गांव के ही विद्यालय में पढ़ी थी । उसके बाद उसने एक प्राइवेट कॉलेज से बी ए कर लिया था । कॉलेज में उसकी दोस्ती अनिल से हो गई । जब भी कोई दो जवान लोग वो भी एक लड़का और एक लड़की हो , उनमें दोस्ती हो जाए तो वह प्यार में कब बदल जाती है , पता ही नहीं लगता है । आशा और अनिल एक दूजे को जान से भी ज्यादा चाहने लगे । 

अनिल आगे पढ़ने के लिए शहर चला गया । आशा ने एम ए प्राईवेट करने का मन बनाया। उन दोनों के बीच बात करने का जरिया केवल फोन ही रह गया था । जब कभी अनिल गांव आता , दोनों घंटे दो घंटे "गांधी पार्क" में जरूर मिलते । दोनों खूब बातें करते और प्यार की कसमें खाते । उनका प्यार परवान चढ़ रहा था । 

अनिल ने अच्छे नंबरों से एम ए पास कर लिया था । अब वह आई ए एस बनना चाहता था । आशा ने कहा भी कि पहले शादी कर लेते हैं फिर आप जो मन में आए कर लेना लेकिन अनिल ने कहा "आशा , मैं रिस्क नहीं ले सकता हूं । मुझे आई ए एस बनना ही है । इसके लिए हमें तपस्या करनी पड़ेगी । हमें तब तक इंतजार करना पड़ेगा जब तक मेरा आई ए एस में चयन नहीं हो जाता है । हम उसके बाद शादी करेंगे " । 

आशा मान गई । आशा के घरवालों ने जब आशा की शादी की बात चलाई तब आशा ने स्पष्ट कह दिया कि वह और अनिल दोनों "कमिटेड" हैं । दोनों ने एक दूसरे को अपना मान लिया है । अब शादी तो केवल औपचारिकता मात्र है । और उन दोनों के बीच यह तय हुआ है कि जब तक अनिल आई ए एस नहीं बन जाता है तब तक वे शादी नहीं करेंगे । इसलिए वे लोग शादी के बारे में चिंता ना करें । 

आशा के घरवाले अनिल और उसके परिवार को अच्छे से जानते थे । रिश्ता तो अच्छा था मगर अनिल आई ए एस बन जाएगा इसकी कोई गारंटी तो नहीं है और आई ए एस कब बनेगा , यह भी पता नहीं है । लेकिन आशा की जिद के आगे किसकी चलती है ? घरवालों ने उसे मुकद्दर के भरोसे छोड़ दिया था । 

समय पंख लगाकर उड़ता चला गया। आशा तीस वर्ष की हो चुकी थी लेकिन अनिल का आई ए एस में चयन नहीं हुआ । बस थोड़े से नंबरों से रह जाता था । लेकिन आशा क्या कर सकती थी ?  इस बार जब अनिल गांव आया तो वह बहुत निराश , हताश लग रहा था । हमेशा की तरह "गांधी पार्क" में वे दोनों घंटों बैठे रहे , एकदम खामोश । अंत में अनिल बोला "आशा , कब तक मेरा इंतजार करोगी ? अपना घर बसा लो और मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो " । 

आशा ने कहा "नहीं , मैं तो तुम्हारी 'परिणीता' हूं । शादी नहीं हुई तो क्या हुआ , मन से तो मैंने सिर्फ और सिर्फ तुम्हें ही अपना 'देवता' माना है । इस दिल के मंदिर में बस एक ही मूरत की स्थापना हो सकती है और वह हो चुकी है । अब दूसरी मूरत नहीं लग सकती है यहां पर " । 

"देखो आशा , मैं एक और चांस लेना चाहता हूं , आखिरी । बस , इसके बाद शादी कर लूंगा , चाहे आई ए एस बनूं या नहीं " ? 
"ओह अनिल ! आई लव यू। तुम कितने अच्छे हो" । और आशा ने खुशी से झूम कर अपनी बाहों का हार अनिल के गले में डाल दिया । 

और एक साल गुजर गया । आशा का एक एक दिन विरहणी की तरह गुजर रहा था । उसके छोटे भाई बहनों की भी शादियां हो गई । मगर आशा ने "आस का दीपक"  बुझने नहीं दिया । 

जिस पल का सबको इंतजार था , आखिर वह पल आ ही गया । अनिल का आई ए एस में चयन हो गया । दोनों के घरवाले बेहद खुश थे । आशा की खुशियों का तो कोई ठिकाना ही नहीं था । जैसे उसकी तपस्या पूरी हो गई और यह उसी तपस्या का ही परिणाम हो । 

आशा फूली नहीं समा रही थी । उसकी वर्षों की मेहनत और प्रतीक्षा का ईनाम मिल गया था उसे । भगवान कितने मेहरबान थे उस पर जो उसके सपने पूरे हो रहे थे । अब मिलन में कोई रुकावट नहीं बची थी । अनिल का सपना पूरा हो गया था । उसने जो चाहा वह हासिल कर लिया था । अनिल की मेहनत और आशा की तपस्या रंग लाई । आदमी लक्ष्य बनाकर पूरे समर्पण से कठिन परिश्रम करते हुए योजना बनाकर अनवरत कार्य करे तो उसे क्या हासिल नहीं हो सकता है ? धीरज और साहस के साथ विश्वास बनाए रखना जरुरी है । जब आशा जैसी शख्सियत उसकी प्रेरणा हो फिर लक्ष्य साधना कौन.सा कठिन काम है । आखिर अनिल ने अपना मु

#लेखनी उपन्यास / धारावाहिक प्रतियोगिता हेतु 


   13
12 Comments

madhura

08-Mar-2023 02:49 PM

nice part

Reply

Barsha🖤👑

01-Feb-2022 09:03 PM

बहुत बढ़िया शुरुआत

Reply

Seema Priyadarshini sahay

27-Jan-2022 09:22 PM

बहुत सुंदर भाग

Reply